लोकतंत्र हैं आ गया,
अब छोड़ो निराशा के विचार को|
बस अधिकार की बात ना सोचों, समझों कर्तव्य के भार को|
भुला न पायेगा काल,
प्रचंड एकता की आग को
शान से फैलाकर तिरंगा,
बढ़ाएंगे देश की शान को
बीत जायेगा वक्त भले,
पर मिटा ना पायेगा देश के मान को
ऐसी उड़ान भरेंगे, दुश्मन भी होगा मजबूर,
ताली बजाने को
एकता ही संबल हैं,
तोड़े झूठे अभिमान को
कंधे से कंधा मिलाकर,
मजबूत करें आधार को
इंसानियत ही धर्म हैं,
बस याद रखें, भारत माता के त्याग को
चंद पाखंडी को छोड़कर,
प्रेम करें हर एक इंसान को
देश हैं हम सबका, बस समझे कर्तव्य के भार को
नव युग हैं आ गया, अब छोड़ो निराशा के विचार को
कर जस्बे को बुलंद जवान
तेरे पीछे खड़ी आवाम
हर पत्ते को मार गिरायेंगे
जो हमसे देश बटवायेंगे
भले हाथो में चूड़ी खनके
छन-छन करते पायल झुमके
पर देश की हैं हम प्रचंड नारी
वक्त पड़ने पर उठाएंगे तलवारे भारी
जहाँ प्रेम की भाषा हैं सर्वोपरि
जहाँ धर्म की आशा हैं सर्वोपरि
ऐसा हैं मेरा देश हिन्दुस्तान जहाँ
देश भक्ति की भावना हैं सर्वोपरि
तिरंगा हमारा हैं शान-ए-जिंदगी
वतन परस्ती हैं वफ़ा-ए-ज़मी
देश के लिए मर मिटना कुबूल हैं हमें
अखंड भारत के स्वपन का जूनून हैं हमें
मोहब्बत का दूसरा नाम हैं मेरा देश
अनेक में एकता का प्रतिक हैं मेरा देश
चंद गैरों की सुनना मुझे गँवारा नहीं
हिन्दू हो या मुस्लिम सभी का प्यारा है मेरा देश
दुश्मनी के लिए यह याद नहीं रहता
वतन मेरा दोस्ती पर कुर्बान हैं
नफरत पाले कोई उड़ान नहीं भरता
दिलों में चाहत ही मेरे वतन की शान है
खुशनसीब है जो वतन पर कुर्बान हुये।
जो तिरंगे में लिपट कर
जिन्दगी से आजाद हुये
मर कर भी अमर हो गये वो
साधारण मनुष्य से शहीद की
शहादत हो गये वो
वतन हैं मेरा सबसे महान
प्रेम सौहाद्र का दूजा नाम
वतन-ए-आबरू पर हैं सब कुर्बान
शांति का दूत हैं मेरा हिन्दुस्तान
मोक्ष पाकर स्वर्ग में रखा क्या हैं
जीवन सुख तो मातृभूमि की धरा पर हैं
तिरंगा कफन बन जाए इस जनम में
तो इससे बड़ा धर्म क्या हैं
आजाद भारत के लाल हैं हम
आज शहीदों को सलाम करते हैं
युवा देश की शान हैं हम
अखंड भारत का संकल्प करते हैं
कीमत करो शहीदों की
वो देश पर कुर्बान हुए
सिर्फ दो दिनों की मोहताज नहीं हैं देश भक्ति
नागरिको की एकता ही हैं
देश की असल शक्ति
ना हिन्दू बन कर देखो
ना मुस्लिम बन कर देखों
बेटों की इस लड़ाई में
दुःख भरी भारत माँ को देखो
धर्म ना हिन्दू का हैं ना ही मुस्लिम का
धर्म तो बस इंसानियत का हैं।
ये भूख से बिलकते बच्चो से पूछों
सच क्या हैं झूठ क्या हैं
किसी मंदिर या मज्जित से नहीं
बेगुनाह बच्चे की मौत पर किसी माँ से पूछों
देश का सपूत बनाना हैं
तो कर्तव्य को जानो
अधिकार की बात न करों
देश के लिए जीवन न्यौछारों
संकलन : गिरीश दारुंटे, मनमाड-नाशिक