संत गाडगे बाबा जिन का बचपन का नाम डेबूजी था और उनका पूरा नाम देबूजी झिंगरजी जानोरकर था जो एक समाज सुधारक और घुमक्कड़ दीक्षित थे उनका जन्म अंजनगाव सुर्जी जिला अमरावती महाराष्ट्र में 23 फरवरी 1876 को हुआ था उनके पिता का नाम झिंगराजि और माता का नाम सखुबाई था उन्होंने अपने समय में भारतीय ग्रामीण इलाकों में महत्वपूर्ण समाज सुधार के कार्य किए थे उनके सामाजिक कार्यों से आज भी कई राजनीतिक और सामाजिक संस्थान प्रेरणा ले रहे हैं. आधुनिक भारत को जिन महापुरूषों पर गर्व होना चाहिए, उनमें राष्ट्रीय सन्त गाडगे बाबा का नाम सर्वोपरि है।
संत गाडगे बाबा की जीवनी :
बाबा गाडगे के का जन्म एक साधारण धोबी परिवार में हुआ था. बाबा गाडगे महाराज एक घूमते-फिरते सामाजिक शिक्षक और समाज सुधारक व्यक्ति थे उनके पैरों में टूटी हुई चप्पल और सिर पर मिट्टी का कटोरा लेकर पैदल ही यात्रा किया करते थे और यही उनकी पहचान थी जब वह किसी गांव में जाते थे तो तुरंत ही वहां की गंदी नालियों और रातों को साफ करने लग जाते थे और अपना काम खत्म होने के बाद खुद ही गांव के लोगों को गांव के साफ होने की बधाई देते थे. गांव के लोग उनके कार्यों से उन्हें कुछ पैसे दे देते थे जिनसे वह अनेक सामाजिक कार्य जैसे धर्मशालाएं, गौशालाएं, विद्यालय,चिकित्सालय तथा छात्रावासों का उन्होंने निर्माण कराया। यह सब उन्होंने भीख मांग मांग कर बनाया किंतु अपने लिए इस महापुरुष ने एक कुटिया तक नहीं बनाई।
गाडगे बाबा खुद अनपढ़ थे, किंतु बड़े विद्वान और बुद्धिवादी व्यक्ति थे। पिता की मौत हो जाने से उन्हें बचपन से अपने नाना के यहाँ रहना पड़ा था। अपने बचपन में उन्होंने गायें चराने और खेती का काम किया। सन् 1905 से 1917 तक वे अज्ञातवास पर चले गये और इसी बीच उन्होंने जीवन को बहुत नजदीक से देखा।
गाँवो की सफाई करने के उपरांत वे शाम को गाँव में भजन कीर्तन का आयोजन करते थे और अपने कीर्तनों के माध्यम से जन-जन तक लोकोपकार और समाज कल्याण कार्यों का प्रसार करते थे। अपने लोकभजनो के माध्यम से वे लोगो को अन्धविश्वास की भावनाओं के विरुद्ध शिक्षित करते थे। अपने भजन कीर्तनों में वे प्रसिद्ध सूफी संत कबीर के दोहो का भी उपयोग करते थे।
संत गाडगे बाबा को जानवरों से अत्यधिक लगाव था और वे लोगो को जानवरो पर अत्याचार करने से रोकते थे और वे समाज में चल रही जातिभेद और रंगभेद की भावना को नही मानते थे और लोगो को इसके खिलाफ वे जागरूक करते थे और पूर्ण रूप से वे ऐसी कुप्रथाओ को समाज से खत्म कर देना चाहते थे। उन्हें शराब से भी घृणा थी और समाज में वे शराबबंदी करवाना चाहते थे।
अंधविश्वासों, आडंबरों, रूढ़ियों तथा सामाजिक कुरीतियों एवं दुर्व्यसनों से समाज को कितनी भयंकर हानि हो सकती है, इसका उन्हें भलीभाँति अनुभव हुआ। इसी कारण इनका उन्होंने घोर विरोध किया करते थे। संत-महात्माओं के चरण छूने की प्रथा आज भी समाज में प्रचलित है, परन्तु गाडगे बाबा इसके प्रबल विरोधी थे।
गाडगे बाबा के जीवन का एकमात्र ध्येय था- लोकसेवा दीन-दुखियों तथा उपेक्षितों की सेवा को ही वे ईश्वर की सच्ची भक्ति मानते थे। धार्मिक आडंबरों का उन्होंने पुरजोर विरोध किया। गाडगे महाराज लोगो को कठिन परिश्रम, साधारण जीवन और परोपकार की भावना का पाठ पढ़ाते थे और हमेशा जरूरतमंदों की सहायता करने को कहते थे। उन्होंने अपनी पत्नी और अपने बच्चों को भी इसी राह पर चलने को कहा। उनका विश्वास था कि ईश्वर हमे न तो तीर्थ स्थानों में मिलेंगे और न मंदिरों या मस्जिद में इश्वर तो दरिद्र नारायण के रूप में मानव समाज में विद्यमान है। जरूरत है तो बस उसे पहचानने की और उसकी तन-मन-धन से सेवा करे। जो की भूखों को भोजन, नंगे को वस्त्र, अनपढ़ को शिक्षा, बेरोजगार को रोजगार और मूक जीवों को अभय प्रदान करना ही भगवान की सच्ची भक्ति व सेवा है।
संत गाडगे बाबा ने तीर्थ स्थानों पर बारह बड़ी-बड़ी धर्मशालाएँ स्थापित करवाई ताकि गरीब यात्रियों को वहाँ मुफ्त में ठहरने को जगह मिल सके। वहाँ यात्रियों को सिगड़ी, बर्तन आदि भी निःशुल्क देने की व्यवस्था की गई है। दरिद्र व्यक्ति के लिए वे प्रतिवर्ष अनेक बड़े-बड़े अन्नक्षेत्र भी किया करते थे, जिनमें अंधे, लंगड़े तथा अन्य अपाहिजों को कम्बल, बर्तन आदि भी बाँटे जाते थे। नासिक में उन्होंने बहुत बड़ी धर्मशाला बनवाई है जिसमे 500 यात्री एक साथ ठहर सकते हैं।
संतश्री गाडगे बाबा कई बार आध्यात्मिक गुरु मेहेर बाबा ( मेहेर बाबा एक ईरानी मूल के भारतीय चिंतक और दार्शनिक ) से भी मिल चुके थे। मेहेर बाबा ने भी संतश्री गाडगे महाराज को उनके पसंदीदा संतो में से एक बताया। Gadge Baba ने भी मैहर बाबा को पंढरपुर (महाराष्ट्र प्रान्त का एक शहर) में आमंत्रित किया और 6 नवंबर 1954 को हज़ारो लोगो ने एक साथ मेहेर बाबा और संतश्री गाडगे महाराज के दर्शन किये ।
संत गाडगे बाबा की उपलब्धिया :
संत गाडगे बाबा महाराष्ट्र के प्रसिद्ध समाज सुधारको में से एक थे। जिहोने अपना पूरा जीवन लोकसेवा के लिए समाज को समर्पित कर दिया. वे एक ऐसे संत थे जो समाज की समस्याओ को समझते थे और गरीबो और जरूरतमंदों के लिये काम करते थे।
उनकी समाजसेवा को देखते हुए भारत सरकार ने भी उनके सम्मान में कई पुरस्कार जारी किये। जैसे की महाराष्ट्र सरकार ने 2000-01 में "संत गाडगेबाबा ग्राम स्वच्छता अभियान" (gram swachata abhiyan) की शुरुवात की थी और जो ग्रामवासी अपने गाँवो को स्वच्छ रखते है उन्हें यह पुरस्कार दिया जाता है।
अमरावती यूनिवर्सिटी का नाम "Sant Gadge Baba Amravati University" भी उन्ही के नाम पर रखा गया है।
संत गाडगे द्वारा स्थापित गाडगे महाराज मिशन' आज भी 12 धर्मशालाओं, 31 कॉलेज व स्कूलों, छात्रावासों आदि संस्थाओं के संचालन तथा समाज सेवा में कार्यान्वित है।
संत गाडगे बाबा की मुत्यु :
बाबा गाडगे अपने अनुयायियों से कहा की जहां मेरी मृत्यु हो जाय, वहीं पर मेरा अंतिम संस्कार कर देना, मेरी मूर्ति, मेरी समाधि, मेरा स्मारक मन्दिर नहीं कुछ नही बनाना। मैने जो कार्य किया है, वही मेरा सच्चा स्मारक है। जब बाबा की तबियत खराब हुई तो चिकित्सकों ने उन्हें अमरावती ले जाने की सलाह दी किन्तु वहां पहुचने से पहले बलगाव के पास पिढ़ी नदी के पुल पर 20 दिसम्बर 1956 को रात्रि 12 बजकर 20 मिनट पर बाबा की जीवन ज्योति हमेशा के समाप्त हो गयी पर वो आज भी लाखो लोगो के दिलो में जिन्दा है। जहां बाबा का अन्तिम संस्कार किया गया। आज वह स्थान गाडगे नगर के नाम से जाना जाता है।
संकलक : गिरीश दारुंटे, मनमाड-नाशिक
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