साने गुरुजी का परिचय | साने गुरुजी हिंदी माहिती | साने गुरुजी हिंदी निबंध | Sane Guruji Hindi Mahiti

साने गुरुजी अपनी माता पर लिखी पुस्तक “श्याम की माँ”(श्यामची आई) के कारण अमर हो गए हैं। पुस्तक हमें बच्चे के निर्माण में माँ के संस्कारों के महत्व से परिचित कराती है। साने गुरुजी एक प्रसिद्ध लेखक, शिक्षक और सामाजिक कार्यकर्ता थे।

साने गुरुजी का पूरा नाम पांडुरंग सदाशिव साने था। उनका जन्म 24 दिसंबर 1899 को रत्नागिरी जिले के पालगड में हुआ था। उनकी माता का नाम यशोदाबाई सदाशिव साने था। साने गुरुजी ने जिस तरह से अपना जीवन व्यतीत किया, उसका पूरा श्रेय वे अपनी मां को ही देते थे।

📲 साने गुरुजी मराठी परिचय

अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद, साने गुरुजी को जलगांव जिले के अमलनेर के प्रताप विद्यालय में शिक्षक के रूप में नौकरी मिल गई। वहां उन्होंने एक छात्र छात्रावास भी चलाया। साने गुरुजी ने छात्रों को आत्मनिर्भरता और अनुशासन का पाठ पढ़ाया। कुछ ही समय में वह सबका चहेता शिक्षक बन गये।

साने गुरुजी ने 1928 में “विद्यार्थी” नामक एक पत्रिका शुरू की। उन्होंने प्रताप दर्शन केंद्र, अमलनेर में दर्शनशास्त्र का भी अध्ययन किया। दर्शन का रचनात्मक प्रभाव उनकी रचनाओं में देखा जा सकता है। महात्मा गांधी का उनके जीवन पर बहुत प्रभाव था। उनका जीवन भर खादी के कपड़े पहनने का इतिहास रहा है।

📲 साने गुरुजी इंग्रजी परिचय

गांधीजी के प्रभाव में, उन्होंने 1930 में सविनय कायदेभंग आंदोलन में भाग लिया। साने गुरुजी लगातार समाज में जातिगत भेदभाव, अस्पृश्यता और अवांछनीय मानदंडों के विरोधी थे। अपने बाद के सामाजिक जीवन में उन्होंने कई बार स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया। नतीजतन, उन्हें कई बार कैद किया गया था।

नासिक में जेल में रहते हुए, उन्होंने “श्यामची आई” पुस्तक का लेखन पूरा किया, जबकि धुले जेल में उन्होंने आचार्य विनोबा भावे द्वारा सुनाई गई “गीताई” का लेखन पूरा किया। उनका बाद का जीवन एक साहित्यकार के रूप में बीता।

📲 साने गुरुजींच्या कविता

साने गुरुजी का मन बहुत संवेदनशील था। वह उनकी रचनाओं में अक्सर देखा जाता था।

वह समाज के हर तत्व के प्रति बेहद भावुक थे। साहित्य लेखन के अलावा उनका जीवन सामाजिक कार्यों को समर्पित प्रतीत होता है। उन्होंने खानदेश को अपनी कर्मभूमि बनाया और सामाजिक कार्यों को बढ़ाया।

उन्होंने प्रांतीयवाद, जातीयता और धर्म के बीच की खाई को पाटने के लिए “आंतरभारती” नामक एक संगठन स्थापित करने का निर्णय लिया। उन्होंने आर्थिक और सामाजिक सहायता भी मांगी। लेकिन उनका सपना पूरा नहीं हुआ क्योंकि उन्होंने 11 जून 1950 को अपना जीवन समाप्त कर लिया।

उनका कालातीत मराठी गीत “बलसागर भारत होवो, विश्र्वात शोभुनी राहो” आज भी देशभक्ति की प्रेरणा देता है। मुझे आशा है कि भारतीय मन ऐसे महान और उदार व्यक्तित्व को आने वाले वर्षों तक याद करता रहेगा|

संकलक : गिरीश दारुंटे, मनमाड-नाशिक

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